अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'
अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार' | |
---|---|
जन्म | 16 जून 1936 बरेली, उत्तर प्रदेशਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
मौत | 13 फ़रवरी 2012 अलीगढ़, उत्तर प्रदेशਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ | (उम्र 75)
कब्र | ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
दूसरे नाम | शहरयार |
पेशा | गीतकार, कवि |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
विधा | ग़ज़ल |
विषय | प्रेम, दर्शन |
अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान (१६ जून १९३६ – १३ फ़रवरी २०१२[1]), जिन्हें उनके तख़ल्लुस या उपनाम शहरयार से ही पहचाना जाना जाता है, एक भारतीय शिक्षाविद और भारत में उर्दू शायरी के दिग्गज थे।
आरंभिक जीवन[संपादित करें]
शहरयार का जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के एक मुस्लिम राजपूत परिवार में १९३६ में हुआ था। १९६१ में उर्दू में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने १९६६ में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के व्याख्याता के तौर पर काम शुरू किया। वह यहीं से उर्दू के विभागाध्यक्ष के तौर पर १९९६ में सेवानिवृत्त हुए।
कार्य[संपादित करें]
बेहद जानकार और विद्वान शायर के तौर पर अपनी रचनाओं के जरिए वह स्व-अनुभूतियों और आधुनिक वक्त की समस्याओं को समझने की कोशिश करते नज़र आते हैं। शहरयार ने गमन और आहिस्ता-आहिस्ता आदि कुछ हिंदी फ़िल्मों में गीत लिखे, लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा लोकप्रियता १९८१ में बनी फ़िल्म उमराव जान से मिली। "इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं," "जुस्तजू जिस की थी उसको तो न पाया हमने," "दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये," "कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता" - जैसे गीत लिख कर हिंदी फ़िल्म जगत में शहरयार बेहद लोकप्रिय हुए हैं।[2]
पुरस्कार एवं सम्मान[संपादित करें]
यह वर्ष २००८ के लिए ४४वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे गये। समकालीन उर्दू शायरी के जगत में अहम भूमिका निभाने वाले शहरयार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार और फ़िराक सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया।[3] शहरयार उर्दू के चौथे साहित्यकार हैं जिन्हें ज्ञानपीठ सम्मान मिला। इससे पहले फ़िराक गोरखपुरी, क़ुर्रतुल-एन-हैदर और अली सरदार जाफ़री को ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है।
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ "शायरी के शहजादे सुपुर्द-ए-खाक". अलीगढ़: दैनिक जागरण. 14 फ़रवरी 2012. अभिगमन तिथि 14 फ़रवरी 2012.
- ↑ "जमीं की गोद में सदा के लिए सो गया शब्दों का चितेरा". अलीगढ़: आईबीएन-7. 14 फ़रवरी 2012. मूल से 16 फ़रवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 फ़रवरी 2012.
- ↑ "मशहूर शायर शहरयार नहीं रहे". अलीगढ़: जनसत्ता. 14 फ़रवरी 2012. मूल से 3 नवंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 फ़रवरी 2012.